नक्सलियों के फरमान से बंद था राम मंदिर

सीआरपीएफ ने 21 बरस बाद खुलवाया छत्तीसगढ़ संवाददाता सुकमा, 8 अप्रैल। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भक्तों को जहां पांच सौ वर्षों का इंतजार करना पड़ा, वैसे ही नक्सली दंश झेल रहे सुकमा जिले में एक ऐसा गांव है, जहां राम मंदिर के कपाट खुलने के लिए भक्तों को 21 वर्षों का लंबा इंतजार करना पड़ा। नक्सलियों के फरमान के बाद जिसे 2003 में पूजा पाठ के लिए नक्सलियों ने बंद करवा दिया, उसे सीआरपीएफ 74वीं वाहिनी के कैम्प लगने के बाद अधिकारी व जवानों ने खुलवाया। सुकमा जिले के घोर नक्सल प्रभावित केरलापेंदा गांव में करीब पांच दशक पहले भगवान राम, सीता व लक्ष्मण की संगमरमर के मूर्तियों की स्थापना मंदिर बनवा कर किया गया था । पर धीरे-धीरे नक्सल वाद के बढ़ते प्रकोप के कारण 2003 में गांव में स्थित राम मंदिर की पूजा पाठ बंद करवा दी गई। जिसके बाद कपाट पूरी तरह से बंद रही। राममंदिर के स्थापना की कहानी ग्रामीणों ने बताया कि 1970 में मंदिर की स्थापना बिहारी महाराज जी द्वारा की गई थी। पूरा गांव इसके लिए सीमेंट /पत्थर /बजरी / सरिया अपने सर पर सुकमा से, लगभग 80 किलोमीटर से उस दौर में पैदल लेकर आये थे । और मंदिर निर्माण करवाया, जिसमें गांव के सभी लोगों ने बढ़-चढ़ के हिस्सा लिया था। उस दौर में न सडक़ हुआ करती थी। न ही समान लाने के लिए वाहनों की उपलब्धता थी। राम जी की आस्था ही थी जो ग्रामीणों जरूरत की समाग्री लंबी दूरी पैदल चल कर समान लाये थे। मंदिर स्थापना के बाद गांव में मांस मदिरा पर था पूरी तरह से प्रतिबंध बताया जाता है कि मंदिर स्थापना के बाद पूरा क्षेत्र व पूरा गांव श्रीराम के भक्त बने और कंठी लगभग पूरे गांव के ग्रामीणों ने लिया और सबसे बड़ी बात कंठी धारण करने के बाद न ही मांस खा सकता है और ना ही मदिरा का सेवन कर सकता है। जबकि आदिवासी इलाके में जहां पूरा गांव मांस और मदिरा /महुवा की बनी शराब का सेवन करता है। वहां सभी ने मांस मदिरा त्याग दिया। बताया जाता है कि आज भी इस गांव में लगभग 95 फीसदी पुरूष और औरतें इनका सेवन नहीं करते हैं। वहीं घोर नक्सल प्रभावित इलाके में यहां के लोग पूजा पाठ और आचरण के हिसाब से कभी भी नक्सल को नहीं भाये, इसका कारण इनका हिंसा से दूर रहा करते थे। नक्सल के द्वारा सपोर्ट ना मिलने के कारण उन्होंने जबरदस्ती 2003 के आस पास पूजा पाठ करने पर पाबन्दी लगा दी। लगता था यहां भव्य मेला, अयोध्या से पहुंचते थे साधु-संत गांव वालों ने जानकारी देते हुए बताया कि उनके बचपन में यहां बहुत भव्य मेला भी लगा करता था और साधु सन्यासी अयोध्या से आते थे और आसपास के गांव के बहुत दूर से लोग यहां आते थे, उनके बताने के हिसाब से यहां जगदलपुर से भी काफी भक्त आते थे। मगर नक्सल प्रकोप बढऩे व नक़्सालियो द्वारा पूजा पाठ बंद करवा देने से सभी आयोजन पूरी तरह से बंद हो गई। मिली जानकारी के अनुसार नक्सलियों के दबाव के कारण यहां पूजा पाठ बंद हो गया साथ ही मेला लगना भी बंद हो गया। बाद में नक्सलियों ने इस मंदिर में ताला मार दिया। इस गांव में एक पुजारी पारा है जिसमें लगभग 25 घर है, वह इस मंदिर की पूजा अर्चना व देखभाल किया करता था । मगर मंदिर नक्सली फरमान के बाद मंदिर में पूजा पाठ बंद हुआ व घास पेड़ उग गए थे और मंदिर की हालत जर्जर हो गईथी। सीआरपीएफ कैम्प लगने के बाद 21 वर्ष बाद जवानों ने खोला कपाट नक्सली फरमान के बाद बंद पड़े मंदिर के कपाट को सीआरपीएफ 74 वीं वाहिनी का कैंप लगने के बाद गांव के लोगों में एक विश्वास की ऊर्जा पैदा करने और उन्हें देश की मुख्य धारा में जोडऩे के लिए अधिकारियों व जवानों ने ग्रामीणों के साथ मिलकर .मंदिर की साफ सफाई करवाई गई, उसके बाद कपाट को खोला गया और गांव के अधिकतम पुरुष और महिलाओं ने पूजा अर्चना मे भाग लिया। सभी ने आरती की और प्रसाद ग्रहण किया। इस मंदिर के खुलने और विधि विधान से पूजा अर्चन करने के कारण सभी ग्रामीण बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने इस कार्य के लिए सीआरपीएफ 74वीं वाहिनी और इनके अधिकारियों एवं जवानों का दिल से आभार प्रकट किया।

नक्सलियों के फरमान से बंद था राम मंदिर
सीआरपीएफ ने 21 बरस बाद खुलवाया छत्तीसगढ़ संवाददाता सुकमा, 8 अप्रैल। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भक्तों को जहां पांच सौ वर्षों का इंतजार करना पड़ा, वैसे ही नक्सली दंश झेल रहे सुकमा जिले में एक ऐसा गांव है, जहां राम मंदिर के कपाट खुलने के लिए भक्तों को 21 वर्षों का लंबा इंतजार करना पड़ा। नक्सलियों के फरमान के बाद जिसे 2003 में पूजा पाठ के लिए नक्सलियों ने बंद करवा दिया, उसे सीआरपीएफ 74वीं वाहिनी के कैम्प लगने के बाद अधिकारी व जवानों ने खुलवाया। सुकमा जिले के घोर नक्सल प्रभावित केरलापेंदा गांव में करीब पांच दशक पहले भगवान राम, सीता व लक्ष्मण की संगमरमर के मूर्तियों की स्थापना मंदिर बनवा कर किया गया था । पर धीरे-धीरे नक्सल वाद के बढ़ते प्रकोप के कारण 2003 में गांव में स्थित राम मंदिर की पूजा पाठ बंद करवा दी गई। जिसके बाद कपाट पूरी तरह से बंद रही। राममंदिर के स्थापना की कहानी ग्रामीणों ने बताया कि 1970 में मंदिर की स्थापना बिहारी महाराज जी द्वारा की गई थी। पूरा गांव इसके लिए सीमेंट /पत्थर /बजरी / सरिया अपने सर पर सुकमा से, लगभग 80 किलोमीटर से उस दौर में पैदल लेकर आये थे । और मंदिर निर्माण करवाया, जिसमें गांव के सभी लोगों ने बढ़-चढ़ के हिस्सा लिया था। उस दौर में न सडक़ हुआ करती थी। न ही समान लाने के लिए वाहनों की उपलब्धता थी। राम जी की आस्था ही थी जो ग्रामीणों जरूरत की समाग्री लंबी दूरी पैदल चल कर समान लाये थे। मंदिर स्थापना के बाद गांव में मांस मदिरा पर था पूरी तरह से प्रतिबंध बताया जाता है कि मंदिर स्थापना के बाद पूरा क्षेत्र व पूरा गांव श्रीराम के भक्त बने और कंठी लगभग पूरे गांव के ग्रामीणों ने लिया और सबसे बड़ी बात कंठी धारण करने के बाद न ही मांस खा सकता है और ना ही मदिरा का सेवन कर सकता है। जबकि आदिवासी इलाके में जहां पूरा गांव मांस और मदिरा /महुवा की बनी शराब का सेवन करता है। वहां सभी ने मांस मदिरा त्याग दिया। बताया जाता है कि आज भी इस गांव में लगभग 95 फीसदी पुरूष और औरतें इनका सेवन नहीं करते हैं। वहीं घोर नक्सल प्रभावित इलाके में यहां के लोग पूजा पाठ और आचरण के हिसाब से कभी भी नक्सल को नहीं भाये, इसका कारण इनका हिंसा से दूर रहा करते थे। नक्सल के द्वारा सपोर्ट ना मिलने के कारण उन्होंने जबरदस्ती 2003 के आस पास पूजा पाठ करने पर पाबन्दी लगा दी। लगता था यहां भव्य मेला, अयोध्या से पहुंचते थे साधु-संत गांव वालों ने जानकारी देते हुए बताया कि उनके बचपन में यहां बहुत भव्य मेला भी लगा करता था और साधु सन्यासी अयोध्या से आते थे और आसपास के गांव के बहुत दूर से लोग यहां आते थे, उनके बताने के हिसाब से यहां जगदलपुर से भी काफी भक्त आते थे। मगर नक्सल प्रकोप बढऩे व नक़्सालियो द्वारा पूजा पाठ बंद करवा देने से सभी आयोजन पूरी तरह से बंद हो गई। मिली जानकारी के अनुसार नक्सलियों के दबाव के कारण यहां पूजा पाठ बंद हो गया साथ ही मेला लगना भी बंद हो गया। बाद में नक्सलियों ने इस मंदिर में ताला मार दिया। इस गांव में एक पुजारी पारा है जिसमें लगभग 25 घर है, वह इस मंदिर की पूजा अर्चना व देखभाल किया करता था । मगर मंदिर नक्सली फरमान के बाद मंदिर में पूजा पाठ बंद हुआ व घास पेड़ उग गए थे और मंदिर की हालत जर्जर हो गईथी। सीआरपीएफ कैम्प लगने के बाद 21 वर्ष बाद जवानों ने खोला कपाट नक्सली फरमान के बाद बंद पड़े मंदिर के कपाट को सीआरपीएफ 74 वीं वाहिनी का कैंप लगने के बाद गांव के लोगों में एक विश्वास की ऊर्जा पैदा करने और उन्हें देश की मुख्य धारा में जोडऩे के लिए अधिकारियों व जवानों ने ग्रामीणों के साथ मिलकर .मंदिर की साफ सफाई करवाई गई, उसके बाद कपाट को खोला गया और गांव के अधिकतम पुरुष और महिलाओं ने पूजा अर्चना मे भाग लिया। सभी ने आरती की और प्रसाद ग्रहण किया। इस मंदिर के खुलने और विधि विधान से पूजा अर्चन करने के कारण सभी ग्रामीण बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने इस कार्य के लिए सीआरपीएफ 74वीं वाहिनी और इनके अधिकारियों एवं जवानों का दिल से आभार प्रकट किया।